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Sunday, March 7, 2010

"Childhood is short and maturity is forever."


Reminding the golden days of my past where I always lived with a blast.

Let me try to integrate life using these lines .

Some are the old poems , i am not sure if "POEM" is the apposite word for these lines.



Stage 1:
This is when we were very small to understand the motion and rotation of fan and this world. :-0

Upar pankha chalta hai
neeche baby sota hai
sote sote bhookh lagi
khalo beta moongfali
moofli mein dana nahi
hum tumhare mama nahi
mama gaye dilli
wahan se laye billi
billi ke doo bachey
Hum sab sachey

Stage 2 : We started learning about tastes and likings :

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चंदा मामा दूर के
पुए पकाए बूर के,
आप खायं थाली में
मुन्ने को दें प्याली में
प्याली गयी टूट
मुन्ना गया रूठ
नयी प्याली लायेंगे
मुन्ने को मनायेंगे.
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Stage 3 :When we start learning whats life and what are living organisms:

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मछली जल की है रानी
जीवन उसका है पानी
हाथ लगाओ, दर जाएगी
बाहर निकालो, मार जाएगी
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Stage 4 : When we start learning the human nature.In this stage we learn how to eat the same fish whom we used to call as " जल की रानी" and now we talk about eating it.
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गोल गोल रानी
इतना इतना पानी
पानी में फिसला मछली
पापा ने पकडा
मम्मा ने बनाया
तुम ने खाया
हम ने खाया
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Stage 5: Now at this stage we start understanding family, parents and emotions .

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मुम्मी की रोटी गोल गोल
पापा का पैसा गोल गोल
दादा का चश्मा गोल गोल
दादी की बिंदी गोल गोल
तू और मैं गोल मटोल
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Stage 6 : We start teasing others , small fights , gudda guddi ki shaddi , aur Vish Amrit , Chupan Chupai and gool gool charpai

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नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए

खाके पीके मोटे होके चोर बैठे रेल में
चोरों वाला डिब्बा कट के पहुँचा सीधा जेल में

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए

उन चोरों की खूब खबर ली मोटे थानेदार ने
मोरों को भी खूब नचाया जंगल की सरकार ने

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए

अच्छी नानी प्यारी नानी रूसा रूसी छोड़ दे
जल्दी से एक पैसा दे दे तू कंजूसी छोड़ दे
अच्छी नानी प्यारी नानी रूठा रूठी छोड़ दे
जल्दी से एक पैसा दे दे तू कंजूसी छोड़ दे

नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए
बाकी जो बचा था काले चोर ले गए
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Stage 7 : We learn about competition i.e Survival of the fittest . Teacher ki maar aur recess ke pehle dosto ke lunch se aachar .. Dono ki yaad aate hai ..

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वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं।
सामने पहाड़ हो
सिंह की दहाड़ हो
तुम निडर,हटो नहीं
तुम निडर,डटो नहीं
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
प्रात हो कि रात हो
संग हो न साथ हो
सूर्य से बढ़े चलो
चन्द्र से बढ़े चलो
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
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Stage 8 : Here we start feeling loneness , missing our parents , friends and known ones .

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सात समुंदर पार से,
गुड़ियों के बाज़ार से,
छोटी सी एक गुड़िया लाना,
गुड़िया चाहे मत लाना,
पापा जल्दी आ जाना
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Stage 9: Here we start watching Movies and reading literature.

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अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

वृक्ष हों भले खड़े,
हो घने, हो बड़े,
एक पत्र-छाँह भी माँग मत, माँग मत, माँग मत!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

तू न थकेगा कभी!
तू न थमेगा कभी!
तू न मुड़ेगा कभी!-कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

यह महान दृश्‍य है-
चल रहा मनुष्‍य है
अश्रु-श्‍वेद-रक्‍त से लथपथ, लथपथ, लथपथ!
अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ


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Stage 10 : Here we start differentiating between God and Lucifer, Good and bad But here we only think in the sphere of our religious influence , not country feeling yet .

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दो न्याय अगर तो आधा दो, और, उसमें भी यदि बाधा हो,

तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम।

हम वहीं खुशी से खायेंगे,

परिजन पर असि न उठायेंगे!

लेकिन दुर्योधन

दुर्योधन वह भी दे न सका, आशीष समाज की ले न सका,

उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला।

हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया,

डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले-

'जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,

हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।

यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है,

मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल।

सब जन्म मुझी से पाते हैं,

फिर लौट मुझी में आते हैं।

यह देख जगत का आदि-अन्त, यह देख, महाभारत का रण,

मृतकों से पटी हुई भू है,

पहचान, कहाँ इसमें तू है।


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Stage 11 : Here we start learning about the Motherland , the love for the country , the sacrifices .

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सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।


करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत
देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।


ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार
अब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।


वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।


खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद
आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।


है लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधर
और हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधर
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।


हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार से
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से
और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है।


हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न
जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम
ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।


दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब
होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज
दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।

यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार

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Stage 12 : Now comes the stage , when we become a part of Mature class and we suddenly realize that now we need to choose some career in our life , we need to take decisions of our own . It is the Stage when we start assaying the life .



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वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती से दूध निकालो
है रुकी जहाँ भी धार शिलाएं तोड़ो
पीयूष चन्द्रमाओं का पकड़ निचोड़ो


चढ़ तुंग शैल शिखरों पर सोम पियो रे
योगियों नहीं विजयी के सदृश जियो रे!


जब कुपित काल धीरता त्याग जलता है
चिनगी बन फूलों का पराग जलता है
सौन्दर्य बोध बन नयी आग जलता है
ऊँचा उठकर कामार्त्त राग जलता है

अम्बर पर अपनी विभा प्रबुद्ध करो रे
गरजे कृशानु तब कंचन शुद्ध करो रे!


जिनकी बाँहें बलमयी ललाट अरुण है
भामिनी वही तरुणी नर वही तरुण है
है वही प्रेम जिसकी तरंग उच्छल है
वारुणी धार में मिश्रित जहाँ गरल है


उद्दाम प्रीति बलिदान बीज बोती है
तलवार प्रेम से और तेज होती है!


छोड़ो मत अपनी आन, सीस कट जाये
मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाये
दो बार नहीं यमराज कण्ठ धरता है
मरता है जो एक ही बार मरता है


तुम स्वयं मृत्यु के मुख पर चरण धरो रे
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!


स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है
बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है


वीरत्व छोड़ पर का मत चरण गहो रे
जो पड़े आन खुद ही सब आग सहो रे!



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Stage 13 : Done with your innocence , or the childhood. We have become a part of the Cruel world and now you want to go back to your old memories ..


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ye daulat bhii le lo, ye shoharat bhii le lo
bhale chhiin lo mujhase merii javaanii
magar mujhako lautaa do bachapan kaa saavan
vo kaagaz kii kashtii, vo baarish kaa paanii

muhalle kii sabase nishaanii puraanii
vo budhiyaa jise bachche kahate the naanii
vo naanii kii baaton mein pariyon kaa deraa
vo chahare kii jhuriryon mein sadiyon kaa pheraa
bhulaae nahiin bhuul sakataa hai koi
vo chhotii sii raaten vo lambii kahaanii


kadii dhuup mein apane ghar se nikalanaa
vo chidiyaa vo bulabul vo titalii pakadanaa
vo gudiyaa kii shaadii mein ladanaa jhagadanaa
vo jhuulon se giranaa vo gir ke sambhalanaa
vo piital ke chhallon ke pyaare se tohafe
vo tuutii hui chuudiyon kii nishaanii

kabhii ret ke unche tiilon pe jaanaa
gharaunde banaanaa banaake mitaanaa
vo maasuum chahat kii tasviir apanii
vo kvaabon khilaunon kii jaagiir apanii
na duniyaa kaa gam thaa na rishton ke bandhan
badii khuubasuurat thii vo zindagaanii

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Stage 14 : This is a stage we realize that we can't crawl back in our past so we start running behind temporary happiness in terms of marriage , love , sex , drugs and Music .

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मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

.....
एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।
....................

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
....................

मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।

और चिता पर जाये उंढेला पत्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालांे को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।।८४।

नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।।८५।

ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंिडत अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।।८६।

यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।।८७।

पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों - साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।।८८।





Stage 15: This is the stage where we undergo a therapy called "Let it go" to ease our pains and calculate our gains :

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जीवन में एक सितारा था
माना वह बेहद प्यारा था
वह डूब गया तो डूब गया
अंबर के आंगन को देखो
कितने इसके तारे टूटे
कितने इसके प्यारे छूटे
जो छूट गए फ़िर कहाँ मिले
पर बोलो टूटे तारों पर
कब अंबर शोक मनाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में वह था एक कुसुम
थे उस पर नित्य निछावर तुम
वह सूख गया तो सूख गया
मधुबन की छाती को देखो
सूखी कितनी इसकी कलियाँ
मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ
जो मुरझाईं फ़िर कहाँ खिलीं
पर बोलो सूखे फूलों पर
कब मधुबन शोर मचाता है
जो बीत गई सो बात गई

जीवन में मधु का प्याला था
तुमने तन मन दे डाला था
वह टूट गया तो टूट गया
मदिरालय का आंगन देखो
कितने प्याले हिल जाते हैं
गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
जो गिरते हैं कब उठते हैं
पर बोलो टूटे प्यालों पर
कब मदिरालय पछताता है
जो बीत गई सो बात गई

मृदु मिट्टी के बने हुए हैं
मधु घट फूटा ही करते हैं
लघु जीवन ले कर आए हैं
प्याले टूटा ही करते हैं
फ़िर भी मदिरालय के अन्दर
मधु के घट हैं,मधु प्याले हैं
जो मादकता के मारे हैं
वे मधु लूटा ही करते हैं
वह कच्चा पीने वाला है
जिसकी ममता घट प्यालों पर
जो सच्चे मधु से जला हुआ
कब रोता है चिल्लाता है
जो बीत गई सो बात गई

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Stage 16 : In this stage , we want to go away from relationships .. away from humans.. we want so called "Varagya" :

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आबादी से दूर,
घने सन्नाटे में,
निर्जन वन के पीछे वाली,
ऊँची एक पहाड़ी पर,
एक सुनहरी सी गौरैया,
अपने पंखों को फैलाकर,
गुमसुम बैठी सोच रही थी,
कल फिर मैं उड़ जाऊँगी,
पार करूँगी इस जंगल को.
वहाँ दूर जो महके जल की,
शीतल एक तलैया है,
उसका थोड़ा पानी पीकर,
पश्चिम को मुड़ जाऊँगी,
फिर वापस ना आऊँगी,
लेकिन पर्वत यहीं रहेगा,
मेरे सारे संगी साथी,
पत्ते शाखें और गिलहरी,
मिट्टी की यह सोंधी खुशबू,
छोड़ जाऊँगी अपने पीछे ....,
क्यों न इस ऊँचे पर्वत को,
अपने साथ उड़ा ले जाऊँ।

और चोंच में मिट्टी भरकर,
थोड़ी दूर उड़ी फिर वापस,
आ टीले पर बैठ गई .....।
हम भी उड़ने की चाहत में,
कितना कुछ तज आए हैं,
यादों की मिट्टी से आखिर,
कब तक दिल बहलाएँगे,
वह दिन आएगा जब वापस,
फिर पर्वत को जाएँगे,
आबादी से दूर,
घने सन्नाटे में।


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Stage 17 : It is the stage for rest of our life where we keep remembering those days and on the same time we say "Do not dwell in the past, do not dream of the future, concentrate the mind on the present moment" . This is stage when you realize "Aab salla kuch bhi nahi ho sakta .. jeevan kaat gaya ladte marte .. aab chalo Bhagwan ka naam liya jaye "

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क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? न तुम कुछ लेकर अाए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।

खाली हाथ अाए अौर खाली हाथ चले। जो अाज तुम्हारा है, कल अौर किसी का था, परसों किसी अौर का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।

परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।

न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, अाकाश से बना है अौर इसी में मिल जायेगा। परन्तु अात्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?

तुम अपने अापको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का अानंन्द अनुभव करेगा।

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Stage 18 : Done with the world. Now only these words follow you ...

राम नाम सत्य है .....राम नाम सत्य है.....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है.....राम नाम सत्य है.....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है...राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है.....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है....राम नाम सत्य है...राम नाम सत्य है



Regards,
Aditya Dogra
"Every life has a death, and every light a shadow. Be content to stand in the light, and let the shadow fall where it will. "

5 comments:

Rhydemz said...

waaah re..
soo nice of you to post it..
sab padh ke wapas yaad aa...
maja aa gaya..

abhi bhi kaafi sare yad thay.. par tune to sare likhe hai..
So nice of u re...
and the ending poems are wonderful...:)

Praveen said...

great dude

pushpam singh said...

kya baaat hai dada...jalwa dal diya apne to ..maaza aagaya...the flow is excellent..

gudiya said...

bhaiya 11th stage ke bad se kuch samajh nahi aaya

sheetal said...

U think a lot